Thursday, February 24, 2022

शंख


शंख को घर के पूजा स्थल में रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। वेद पुराणों की मानें तो शंख समुद्रमंथन के दौरान उत्पन्न हुआ है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि जहां शंख होता है वहां महालक्ष्मी का वास होता है। शंख की आवाज से वातावऱण में शुद्धता आती है। भारतीय संस्कृती और बौद्ध धर्म में शंख का महत्व काफ़ी ज़्यादा है। पूजा पाठ में तो इसे इस्तेमाल किया ही जाता है, साथ ही इसकी पूजा भी की जाती है। हर अच्छी शुरुआत से पहले इसे बजाना शुभ माना जाता है। साथ ही ये भी मान्यता है कि महाभारत की शुरूआत भी श्री कृष्ण के शंखनाद से ही हुई थी।

क्या आप जानते हैं कि शंख के भी प्रकार होते हैं, जिसे अलग-अलग तरीके से उपयोग में लाया जाता है।

1. दक्षिणावर्ती शंख, 2. वामावर्ती शंख, 3. गौमुखी शंख, 4. कौड़ी शंख,5. मोती शंख, 6. हीरा शंख

शंख में ये चीज डाल रखें इस दिशा में, होगी धन-धान्य एवं आर्थिक समृद्धि

शंख को कुबेर का भी प्रतीक माना जाता है, जो धन के देवता हैं। यही कारण है कि लोग इसकी पूजा करते हैं।शंखनाद करने से घर का वातावरण शुद्ध रहता है। ये भी कहा जाता है कि शंखनाद करने से दिल की बीमारी नहीं होती।


भारतीय संस्कृति में ये भी माना जाता है कि भगवान विष्णु के 4 हाथों में से एक हाथ में शंख होता है, और उन्हें सुदर्शन चक्र की ही तरह शंख से भी प्रेम है। जहां शंख की पूजा होती है, भगवान विष्णु उस जगह ज़रूर वास करते हैं। पुराण और वेदो में भी इसका ज्रिक किया गया है। बताया जाता है कि शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जिसके बाद उसे भगवान विष्णु ने धारण किया था। शंख के आगे के हिस्से में सूर्य और वरूण देव का वास होता है जो घर में सकारात्मक उर्जा फैलाते हैं। साथ ही उसके पिछले हिस्से को गंगा का रूप माना जाता है जो शुद्धता का प्रतीक होता है। शंखनाद करने से जो ध्वनी उत्पन्न होती है उससे कई तरह के सूक्ष्म जीवाणु भी मारे जाते हैं।


विज्ञान भी शंखनाद की उपयोगिता को मानता है. इसके उपयोग से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं और दिल की किसी भी तरह की बीमारी का डर खत्म होता है। अगर आपको रक्तचाप की समस्या है तो उसका भी रामबाण इलाज है शंखनाद।


शंखनाद करते वक़्त कुछ बातों का ध्यान रखना काफ़ी महत्वपूर्ण होता है:


जिस शंख को बजाया जाता है उसे पूजा के स्थान पर कभी नहीं रखा जाता


जिस शंख को बजाया जाता है उससे कभी भी भगवान को जल अर्पण नहीं करना चाहिए


एक मंदिर में या फ़िर पूजा स्थान पर कभी भी दो शंख नहीं रखने चाहिए


पूजा के दौरान शिवलिंग को शंख से कभी नहीं छूना चाहिए


भगवान शिव और सूर्य देवता को शंख से जल अर्पण कभी भी नहीं करना चाहिए


पूजा की शुरूआत और पूजा में आरती के बाद शंख को बजाया जाता है। पूजा में शंख को बजाने को लेकर कई नियम हैं।


1.धार्मिक मान्यताओं की मानें तो शंख का संबंध भगवान विष्णु से है। इस भगवान विष्णु के चार आयुध शस्त्रों में गिना जाता है। भगवान विष्ण के हाथों में चक्र, गदा, पदम यानी कमल का फूल और की तरह शंख भी होता है।


2.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार य़ह भी कहा जाता है कि कहा जाता है कि पूजा में जब शंख बजाया जाता है तो इसकी ध्वनि से आकर्षित होकर भगवान विष्णु पूजा स्थल की ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। इससे न सिर्फ शंख बजाने वाले को लाभ होता है बल्कि जो पूजा में शामिल हैं उन्हें भी इसका फायदा मिलता है।


3.शंख को पूजा स्थल में कपड़े में लपेटकर रखना चाहिए। इसके साथ ही शंख को घर के पूजा के कमरे में आसन पर रखना चाहिए।


4. घर में शंख को सबुह और शाम ही बजाना चाहिए। इसके अलावा शंखो को नहीं बजाना चाहिए।


5. मंदिर में एक से ज्यादा शंख नहीं होने चाहिए।


6. शंख को होली, दिवाली जैसे शुभ मुहर्त में ही पूजा स्थल में स्थापित किया जाना चाहिए।


7.अपना शंख न तो किसी को इस्तेमाल करने दें और न ही किसी और का शंख आप इस्तेमाल करें।


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अगर आपको शंख खरीद के घर लाना है तो दो शंख लाएं और इन दोनों को अलग अलग रखें।


2. बजने वाले शंख को पानी से धोना चाहिए लेकिन इसे किसी मंत्र से अभीमंत्रित नहीं करना चाहिए। शंख को पूजा स्थल में पीले कपड़े में लपेटकर रखना चाहिए।


3. और पूजा करने वाले शंख को गंगाजल से धोना चाहिए साथी सफ़ेद कपड़े में लपेट कर रखना चाहिए।


4 पूजा में इस्तेमाल होने वाले शंख को किसी ऊंची जगह पर रखना चाहिए। वहीँ बाजाने वाले शंख को उससे नीची जगह पर रखना चाहिए।


5. एक ही मंदिर में दो तरह के शंख नहीं रखने चाहिए। अगर दो रखने भी हैं तो एक बजाने के लिए रखें और एक पूजा करने के लिए।


6. शंख कभी भी शिवलिंग के आस पास नहीं रखना चाहिए, और यदि रखना है भी तो उसे छूना नहीं चाहिए।


7. शंख को कभी भी भगवान शिव या भगवान सूर्य को पानी चढ़ाने के लिए नहीं इस्तेमाल करना चाहिए।


मंदिर में की जाने वाली आरती हो या कोई भी धार्मिक समारोह, शख की ध्वनि को बजाना बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार पूजा-पाठ के समस्त कार्य तीन बार शंख बजाने से शुरू किए जाते हैं। माना जाता है कि इससे वातावरण में से सभी प्रकार की अशुद्धियां का नाश होता है और हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा का भी अंत होता है। जिससे व्यक्ति को बहुत लाभ मिलते हैं। शंख की ध्वनि से न केवल वातावरण शुद्घ होता है बल्कि देवता भी हमारी ओर आकर्षित होते हैं। इसके अलावा शंख की ध्वनि से पूजा की विविध वस्तुओं में चेतना जागृत होती है, जिससे हमारे द्वारा की गई पूजा सार्थक होती है। 


माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय निकलने वाले चौदह रत्नों में से एक रत्न शंख भी था। धार्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से शंख बहु उपयोगी है। शंख बजाने से कुंभक, रेचक तथा प्राणायाम क्रियाएं एक साथ होती हैं, जिससे स्वास्थ्य सही बना रहता है। यह कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है। यदि शंख में रातभर गंगाजल भरकर प्रातः सेवन किया जाए, तो शरीर में कैल्शियम तत्व की कमी नहीं होती है। आयुर्वेद के अनुसार, शंख की भस्म के औषधीय प्रयोग से हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, अस्थमा, मंदाग्नि, मस्तिष्क और स्नायु तंत्र से जुड़े रोगों में लाभ मिलता है। लयबद्ध ढंग से शंख बजाने से फेफड़ों को मजबूती मिलती है, जिससे शरीर में शुद्ध आक्सीजन का प्रवाह होने से रक्त भी शुद्ध होता है। 


कहा जाता है कि दक्षिणवर्ती शंख धन की देवी लक्ष्मी का स्वरूप है, इसलिए धन लाभ और सुख-समृद्धि के लिए घर में उत्तर-पूर्व दिशा में अथवा पूजा घर में इसे रखना चाहिए। प्रतिदिन इसकी धूप दीप दिखाकर पूजा करनी चाहिए। पितृ दोष के असर से बचने के लिए दक्षिणवर्ती शंख में पानी भरकर अमावस्या और शनिवार के दिन दक्षिण दिशा में मुख करते हुए तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होकर शुभ आशीर्वाद देते हैं, जिससे गृह कलह, कार्यों में बाधा, संतानहीनता और धन की कमी जैसी समस्याएं दूर होने लगती हैं। 


नवग्रहों की शांति एवं प्रसन्नता के लिए भी शंख को उपयोगी रत्न माना गया है। सूर्य ग्रह की प्रसन्नता के लिए सूर्योदय के समय शंख से सूर्यदेव पर जल अर्पित करना चाहिए। चंद्र ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए शंख में गाय का कच्चा दूध भरकर सोमवार को भगवान शिव पर चढ़ाना चाहिए। मंगल ग्रह को अपने अनुकूल बनाने के लिए मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करते हुए शंख बजाना आसान और श्रेष्ठ उपाय है।


बुध ग्रह की प्रसन्नता के लिए शंख में जल और तुलसी दल लेकर शालिग्राम पर अर्पित करना चाहिए, वहीं गुरु ग्रह को प्रसन्न करने के लिए गुरुवार को दक्षिणवर्ती शंख पर केसर का तिलक लगाकर पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए शंख को श्वेत वस्त्र में लपेट कर पूजा घर में रखना चाहिए। धन-धान्य एवं आर्थिक समृद्धि पाने के लिए शंख में चावल भरकर लाल रंग के वस्त्र में लपेट कर उत्तर दिशा की ओर खुलने वाली तिजोरी अथवा धन रखने वाली अलमारी में रखना चाहिए।

 नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान

पांच दिवसीय दिवाली उत्सव धनत्रयोदशी से शुरू होता है और भैया दूज के दिन तक चलता है। अभ्यंग स्नान तीन दिन यानी चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिनों में दिवाली के दौरान करने का सुझाव दिया गया है।


चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान, जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है, सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन अभ्यंग स्नान करते हैं, वे नरक में जाने से बच सकते हैं। अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल (यानी तिल) के तेल का प्रयोग करना चाहिए।


नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान अंग्रेजी कैलेंडर पर लक्ष्मी पूजा के एक दिन पहले या उसी दिन हो सकता है। जब चतुर्दशी तिथि सूर्योदय से पहले रहती है और अमावस्या तिथि सूर्यास्त के बाद प्रबल होती है तो नरक चतुर्दशी और लक्ष्मी पूजा एक ही दिन पड़ती है। अभ्यंग स्नान हमेशा चंद्रोदय के दौरान किया जाता है लेकिन सूर्योदय से पहले जबकि चतुर्दशी तिथि प्रचलित है।


अभ्यंग स्नान के लिए हमारी मुहूर्त खिड़की चंद्रोदय और सूर्योदय के बीच है जबकि चतुर्दशी तिथि प्रबल होती है। हम अभ्यंग स्नान मुहूर्त ठीक वैसे ही प्रदान करते हैं जैसा कि धार्मिक हिंदू ग्रंथों में निर्धारित किया गया है। हम सभी अपवादों पर विचार करते हैं और अभ्यंग स्नान के लिए सर्वोत्तम तिथि और समय सूचीबद्ध करते हैं।


नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, रूप चतुर्दशी और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।


अक्सर नरक चतुर्दशी को काली चौदस के समान माना जाता है। हालाँकि दोनों एक ही तिथि पर मनाए जाने वाले दो अलग-अलग त्योहार हैं और चतुर्दशी तिथि की शुरुआत और समाप्ति के समय के आधार पर लगातार दो अलग-अलग दिन पड़ सकते हैं।

 लक्ष्मी पूजा | दिवाली पूजा

लक्ष्मी पूजा व्रत और अनुष्ठान

दिवाली के दिन लोगों को सुबह जल्दी उठकर अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए और परिवार के देवताओं की पूजा करनी चाहिए। अमावस्या का दिन होने के कारण लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध भी करते हैं। परंपरागत रूप से, अधिकांश पूजा एक दिन का उपवास रखने के बाद की जाती है। इसलिए, देवी लक्ष्मी के भक्त लक्ष्मी पूजा के दिन एक दिन का उपवास रखते हैं। शाम को लक्ष्मी पूजा के बाद व्रत तोड़ा जाता है।


लक्ष्मी पूजा की तैयारी

अधिकांश हिंदू परिवार लक्ष्मी पूजा के दिन अपने घरों और कार्यालयों को गेंदे के फूलों और अशोक, आम और केले के पत्तों से सजाते हैं। घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर मांगलिक कलश को बिना छिलके वाले नारियल से ढक कर रखना शुभ माना जाता है।


लक्ष्मी पूजा की तैयारी के लिए, एक उठे हुए मंच पर दाहिने हाथ की ओर एक लाल कपड़ा रखना चाहिए और उस पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियों को रेशमी कपड़े और आभूषणों से सजाकर स्थापित करना चाहिए। इसके बाद नवग्रह देवताओं को स्थापित करने के लिए उठे हुए चबूतरे पर बायीं ओर सफेद कपड़ा रखना चाहिए। सफेद कपड़े पर नवग्रह स्थापित करने के लिए अक्षत (अखंड चावल) के नौ टुकड़े तैयार करना चाहिए और लाल कपड़े पर गेहूं या गेहूं के आटे के सोलह टुकड़े तैयार करना चाहिए। लक्ष्मी पूजा विधि में वर्णित पूर्ण रीति से लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए।


लक्ष्मी पूजा मुहूर्त

दिवाली पर, लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल के दौरान की जानी चाहिए जो सूर्यास्त के बाद शुरू होती है और लगभग 2 घंटे 24 मिनट तक चलती है। कुछ स्रोत महानिशिता काल को भी लक्ष्मी पूजा करने का प्रस्ताव देते हैं। हमारी राय में महानिशिता काल तांत्रिक समुदाय और अभ्यास करने वाले पंडितों के लिए सबसे उपयुक्त है जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में सबसे अच्छी तरह जानते हैं। आम लोगों के लिए हम प्रदोष काल मुहूर्त प्रस्तावित करते हैं।


हम लक्ष्मी पूजा करने के लिए चौघड़िया मुहूर्त चुनने की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि वे मुहूर्त केवल यात्रा के लिए अच्छे हैं। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे अच्छा समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रबल होता है। स्थिर का अर्थ है स्थिर अर्थात चलने योग्य नहीं। यदि स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाती है, तो लक्ष्मीजी आपके घर में रहेंगी; इसलिए यह समय लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वोत्तम है। वृषभ लग्न को स्थिर माना जाता है और ज्यादातर दिवाली उत्सव के दौरान प्रदोष काल के साथ ओवरलैप होता है।


हम लक्ष्मी पूजा के लिए सटीक विंडो प्रदान करते हैं। हमारे मुहूर्त समय में प्रदोष काल और स्थिर लग्न होता है जबकि अमावस्या प्रचलित है। हम स्थान के आधार पर मुहूर्त प्रदान करते हैं, इसलिए आपको शुभ लक्ष्मी पूजा के समय को नोट करने से पहले अपने शहर का चयन करना चाहिए।


दिवाली पूजा के दौरान कई समुदाय विशेष रूप से गुजराती व्यवसायी चोपड़ा पूजन करते हैं। चोपड़ा पूजा के दौरान अगले वित्तीय वर्ष के लिए देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद लेने के लिए नई खाता बही का उद्घाटन किया जाता है। दिवाली पूजा को दीपावली पूजा और लक्ष्मी गणेश पूजन के नाम से भी जाना जाता है।

 केदार गौरी व्रत

केदार गौरी व्रत मुख्य रूप से दक्षिणी भारतीय राज्यों विशेषकर तमिलनाडु में मनाया जाता है। इसे केदारा व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह दीपावली अमावस्या के दिन मनाया जाता है और दिवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा दिवस के साथ मेल खाता है।


कुछ परिवारों में, केदार गौरी व्रत 21 दिनों तक मनाया जाता है। इक्कीस दिनों का उपवास दीपावली अमावस्या के दिन समाप्त होता है। हालांकि, ज्यादातर लोग केदार गौरी व्रत के दिन एक दिन का उपवास रखते हैं। यह भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण उपवास का दिन है।


केदार गौरी व्रत की कथा

भृंगी ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। हालाँकि, महान ऋषि को केवल भगवान शिव पर भरोसा था और उनकी शक्ति की उपेक्षा करते थे। इससे भगवान शिव की शक्ति देवी नाराज हो गईं और उन्होंने ऋषि भृंगी के शरीर से ऊर्जा निकाल दी। हटाई गई ऊर्जा और कुछ नहीं बल्कि स्वयं देवी गौरी थीं।


हटाई गई ऊर्जा भगवान शिव के शरीर का हिस्सा बनना चाहती थी। उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए केदार व्रत का पालन किया। हटाई गई शक्ति की तपस्या ने भगवान शिव को इतना प्रसन्न किया कि उन्होंने अपने शरीर का बायां हिस्सा शक्ति को हटाने के लिए दे दिया। भगवान शिव और देवी शक्ति के परिणामी रूप को अर्धनारीश्वर (अर्धनारीश्वर) के रूप में जाना जाता था।


जैसा कि देवी गौरी ने स्वयं भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया था, इस व्रत को केदार गौरी व्रत के रूप में जाना जाता है।

 दिवाली चोपड़ा पूजा

दिवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा को गुजरात में चोपड़ा पूजा के रूप में जाना जाता है।


गुजराती समुदाय अपने उद्यमशीलता कौशल के लिए प्रसिद्ध है और पारिवारिक व्यवसायों को पीढ़ी दर पीढ़ी सफलतापूर्वक प्रबंधित किया जाता है। कॉरपोरेट घरानों के विपरीत, पारिवारिक व्यवसाय आधुनिक भारत में भी परंपराओं को कायम रखते हैं। इसलिए, अधिकांश व्यावसायिक रूप से संचालित व्यवसाय भी भारतीय परंपराओं की संस्कृति को आत्मसात करते हैं और शुभ समय के दौरान महत्वपूर्ण व्यावसायिक कार्यक्रमों की योजना बनाते हैं। चोपड़ा पूजा भी धार्मिक परंपराओं का हिस्सा है जहां एक सफल व्यवसाय को आने वाले वर्ष को लाभदायक बनाने के लिए देवताओं के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है।


दिवाली आने वाले वर्ष को समृद्ध और लाभदायक बनाने के लिए भगवती लक्ष्मी, भगवान गणेश और मां शारदा का आशीर्वाद लेने का सबसे उपयुक्त समय है। इसलिए दिवाली चोपड़ा पूजा के दौरान नई खाता बही को पवित्र किया जाता है।


गुजरात में पारंपरिक लेखा पुस्तकों को चोपड़ा या चोपड़ा के नाम से जाना जाता है। हालाँकि, कंप्यूटर और इंटरनेट के युग में, चोपडा का महत्व हाशिए पर चला गया है क्योंकि अधिकांश व्यवसाय अपने वित्तीय प्रबंधन के लिए लैपटॉप और अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं। लेकिन यह चोपड़ा पूजा के महत्व को नहीं बदलता है क्योंकि व्यवसायी अपने लैपटॉप को चोपड़ा के रूप में उपयोग करते हैं और देवताओं के सामने इसकी पूजा करते हैं। वर्तमान समय में लैपटॉप के ऊपर चोपड़ा के स्थान पर स्वास्तिक, ओम और शुभ-लाभ खींचे जाते हैं।


गुजरात में, चौघड़िया मुहूर्त प्रचलित है और चोपड़ा पूजा करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। लोग दीपावली के दिन शुभ चौघड़िया समय पसंद करते हैं। चौघड़िया मुहूर्त जो पूजा करने के लिए शुभ माने जाते हैं वे हैं अमृत, शुभ, लाभ और चार। चौघड़िया मुहूर्त का उपयोग करने का लाभ यह है कि ये दिन के समय के साथ-साथ रात के समय भी उपलब्ध होते हैं। हालांकि, चुनावी ज्योतिष में, विशेष रूप से प्रदोष के दौरान लग्न आधारित मुहूर्त को चौघड़िया मुहूर्त पर वरीयता दी जाती है। इसलिए, लग्न आधारित दिवाली मुहूर्त और प्रदोष समय लक्ष्मी पूजा मुहूर्त दिवाली लक्ष्मी पूजा के दौरान अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।


चोपड़ा पूजा की रस्म को मुहूर्त पूजन और चोपड़ा पूजन के नाम से भी जाना जाता है। गुजरात के अलावा, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी हिंदू व्यापारी समुदाय द्वारा चोपड़ा पूजा की जाती है।

 

दिवाली शारदा पूजा

 दिवाली शारदा पूजा

दीपावली पूजा को गुजरात में शारदा पूजा और चोपड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। शारदा पूजा देवी सरस्वती को समर्पित है। शारदा देवी सरस्वती के नामों में से एक है, जो ज्ञान, ज्ञान और शिक्षा की हिंदू देवी हैं।


देवी लक्ष्मी, धन और समृद्धि की देवी, प्रमुख देवता हैं जिनकी पूजा दिवाली पूजा के दौरान की जाती है। हालांकि, दिवाली पूजा के दौरान देवी शारदा और भगवान गणेश को समान महत्व दिया जाता है। परंपरागत रूप से, दिवाली पूजा के दौरान तीनों देवताओं की पूजा की जाती है। दिवाली पूजा के लिए बाजार में उपलब्ध अधिकांश दीवार पोस्टर, कैलेंडर और मिट्टी की मूर्तियों ने तीनों को एक साथ रखा।


हिंदू धर्म में, यह दृढ़ता से माना जाता है कि ज्ञान और ज्ञान के बिना धन स्थायी नहीं है। देवी लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद से लोग समृद्ध और धनवान बन सकते हैं। हालांकि, अगर भगवान गणेश और देवी शारदा, जो क्रमशः ज्ञान और ज्ञान प्रदान करते हैं, प्रसन्न नहीं होते हैं, तो धन और समृद्धि को बनाए और विकसित नहीं किया जा सकता है। इसलिए धन और समृद्धि को बनाए रखने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है और धन को विकसित करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसलिए, अधिकांश हिंदू परिवार दिवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी के साथ देवी सरस्वती और भगवान गणेश की पूजा करते हैं।


शारदा पूजा का दिन छात्रों के लिए देवी शारदा का आशीर्वाद लेने के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए छात्र अपनी पढ़ाई में सफलता के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं।


छात्रों के अलावा, शारदा पूजा का दिन उन व्यापारिक परिवारों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो अपनी खाता बही बनाए रखते हैं। गुजरात में पारंपरिक खाता बही को चोपड़ा के नाम से जाना जाता है। शारदा पूजा के दौरान मां शारदा के साथ-साथ देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की उपस्थिति में नए चोपड़ा का उद्घाटन किया जाता है। यह दृढ़ता से माना जाता है कि किसी भी व्यवसाय को बढ़ने और सफल और लाभदायक बनने के लिए तीनों देवताओं के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है।


इसलिए, शारदा पूजा दिवाली पूजा का एक अभिन्न अंग है और अक्सर गुजरात में चोपड़ा पूजन और दिवाली पूजन के साथ एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है।

बीज 


ऐं (सरस्वती बीज)

ऐ- सरस्वती, नाद- जगन्माता और बिंदु- दुखहरण है। इसका अर्थ है- जगन्माता सरस्वती मेरे दुख दूर करें। इस बीज मंत्र के जप से मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है और विद्या, कला के क्षेत्र में व्यक्ति दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता चला जाता है।


गं (गणपति बीज)

इसमें ग्- गणेश, अ- विघ्ननाशक एवं बिंदु- दुखहरण हैं। इस प्रकार इस बीज का अर्थ है- विघ्ननाशक श्री गणेश मेरे दुख दूर करें। इस मंत्र के जप से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है और पैसा आने लगता है।


श्रीं (लक्ष्मी बीज)

इसमें श्- महालक्ष्मी, र्- धन संपत्ति, ई- महामाया, नाद- विश्वमाता तथा बिंदू- दुखहरण हैं। इसका अर्थ है- धन संपत्ति की अधिष्ठात्री माता लक्ष्मी मेरे दुख दूर करें। इस मंत्र के प्रयोग से सभी प्रकार के आर्थिक संकट दूर होते हैं, कर्ज से मुक्ति मिलती है और शीघ्र ही धनवान व पुत्रवान बनते हैं।


क्लीं (कृष्ण बीज)

इसमें क- श्रीकृष्ण, ल- दिव्यतेज, ई- योगेश्वर एवं बिंदु- दुखहरण है। इस बीज का अर्थ है- योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर करें। यह मंत्र साक्षात भगवान वासुदेव को प्रसन्न करने के लिए है। इससे व्यक्ति को अखंड सौभाग्य मिलता है और मृत्यु के उपरांत वह बैकुंठ में जाता है।


हं (हनुमद् बीज)

इसमें ह्- हनुमान , अ- संकटमोचन एवं बिंदु- दुखहरण है। इसका अर्थ है- संकटमोचन हनुमान मेरे दुख दूर करें। बजरंग बली की आराधना के लिए इससे बेहतर मंत्र नहीं है।


हौं (शिव बीज)

इस बीज में ह्- शिव ?, औ- सदाशिव एवं बिंदु- दुखहरण है। इस बीज का अर्थ है- भगवान शिव मेरे दुख दूर करें। इस बीज मंत्र से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इससे व्यक्ति पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं और रोग, शोक, कष्ट, निर्धनता आदि से मुक्ति मिलती है।


बीज मंत्रों 


बीज मंत्रों के नियमित जप से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा व्यक्ति जीवन-मृत्यु के भय से मुक्त होकर अपना जीवन जीता है और अंत में मोक्ष गति को प्राप्त होता है।


भगवान श्री गणेश का बीज मंत्र "गं" है।

इस बीज मंत्र के नियमित जप से बुद्धि का विकास होता है और घर में धन संपदा की वृद्धि होती है।


भगवान शिव का बीज मंत्र "ह्रौं" है।

भगवान शिव के इस बीज मंत्र के जप से भोलेनाथ अतिशीघ्र प्रसन्न होते है। इस बीज मंत्र के प्रभाव से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है व रोग आदि से छुटकारा मिलता है।


भगवान श्री विष्णु का बीज मंत्र "दं"  है।

जीवन में हर प्रकार के सुख और एश्वर्य की प्राप्ति हेतु इस बीज मंत्र द्वारा भगवान श्री विष्णु की आराधना करनी चाहिए।


भगवान श्री राम का बीज मंत्र "रीं" है।

जिसे भगवान श्री राम के मंत्र के शुरू में प्रयोग करने से मंत्र की प्रबलता और भी अधिक हो जाती है। भगवान श्री राम के बीज मंत्र को इस प्रकार से प्रयोग करें-

रीं रामाय नमः।


हनुमान जी का बीज मंत्र "हं" है।

भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी की आराधना कलयुग के समय में शीघ्र फल प्रदान करने वाली है। ऐसे में बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना आपके सभी दुखों को हराने में सक्षम है।


भगवान श्री कृष्ण का बीज मंत्र "क्लीं" है।

जिसका उच्चारण अकेले भी किया जा सकता है एवं भगवान श्री कृष्ण के वैदिक मंत्र के साथ भी किया जाता है।  इस बीज मंत्र का प्रयोग इस प्रकार करें-

"क्लीं कृष्णाय नमः"


शक्ति स्वरुप माँ दुर्गा का बीज मंत्र "दूं" है।                                            

जिसका अर्थ है- हे माँ, मेरे सभी दुखों को दूर कर मेरी रक्षा करो।


माँ काली का बीज मंत्र "क्रीं" है।                                               

जीवन से भय, ऊपरी बाधाओं, शत्रुओं के छूटकारा दिलाने में मां काली के बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना विशेष रूप से लाभ प्रदान करने वाली है। इस बीज मन्त्र का प्रयोग इस प्रकार करें-

"ॐ क्रीं कालिकाय नम:"


देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र "श्रीं" है।

देवी लक्ष्मी को स्वभाव से चंचल माना गया है। इसलिए वे अधिक समय के लिए एक स्थान पर नहीं रूकती।  घर में धन-सम्पति की वृद्धि हेतु मां लक्ष्मी के इस बीज मंत्र द्वारा आराधना से लाभ अवश्य प्राप्त होता है।


मां सरस्वती का बीज मंत्र "ऐं" है। 

माता सरस्वती विद्या को देने वाली देवी है परीक्षा में सफलता के लिए व हर प्रकार के बौद्धिक कार्यों में सफलता हेतु माँ सरस्वती के इस बीज मंत्र का जप प्रभावी सिद्ध होता है और भी कुछ बीज मंत्र ऐसे है जो सूचक है उस परमपिता परमेश्वर के जो समस्त ब्रम्हांड के रचियता और रक्षक है। 

ये बीज मंत्र इस प्रकार है-

"ॐ"   "खं"  "कं"

ये तीनों बीज मंत्र ब्रह्म वाचक है।