Saturday, February 20, 2021

श्री राम अष्टकम || 


भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम् ।

स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम् ॥ १ ॥


जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकं ।

स्वभक्तभीतिभञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ २ ॥


निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम् ।

समं शिवं निरञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ ३ ॥


सहप्रपञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम् ।

निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम् ॥ ४ ॥


निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम् ।

चिदेकरूपसन्ततं भजे ह राममद्वयम् ॥ ५ ॥


भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम् ।

गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम् ॥ ६ ॥


महावाक्यबोधकैर्विराजमानवाक्पदैः ।

परं ब्रह्मसद्व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ७ ॥


शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम् ।

विराजमानदेशिकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ८ ॥


रामाष्टकं पठति यस्सुखदं सुपुण्यं ।

व्यासेन भाषितमिदं शृणुते मनुष्यः ॥ ९ ॥


विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं ।

संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥ १० ॥

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