Thursday, February 18, 2021

चामुण्डा देवी की चालीसा



दोहा
नीलवरण माँ कालिका रहती सदा प्रचंड ।
दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुष्ट को दंड ।।


मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत ।
मेरी भी पीड़ा हरो हो जो कर्म पुनीत ।।


चौपाई


नमस्कार चामुंडा माता । तीनो लोक मई मई विख्याता ।।
हिमाल्या मई पवितरा धाम है । महाशक्ति तुमको प्रणाम है ।।1।।


मार्कंडिए ऋषि ने धीयया । कैसे प्रगती भेद बताया ।।
सूभ निसुभ दो डेतिए बलसाली । तीनो लोक जो कर दिए खाली ।।2।।


वायु अग्नि याँ कुबेर संग । सूर्या चंद्रा वरुण हुए तंग ।।
अपमानित चर्नो मई आए । गिरिराज हिमआलये को लाए ।।3।।


भद्रा-रॉंद्र्रा निट्टया धीयया । चेतन शक्ति करके बुलाया ।।

क्रोधित होकर काली आई । जिसने अपनी लीला दिखाई ।।4।।


चंदड़ मूंदड़ ओर सुंभ पतए । कामुक वेरी लड़ने आए ।।

पहले सुग्गृीव दूत को मारा । भगा चंदड़ भी मारा मारा ।।5।।


अरबो सैनिक लेकर आया । द्रहूँ लॉकंगन क्रोध दिखाया ।।

जैसे ही दुस्त ललकारा । हा उ सबद्ड गुंजा के मारा ।।6।।


सेना ने मचाई भगदड़ । फादा सिंग ने आया जो बाद ।।

हत्टिया करने चंदड़-मूंदड़ आए । मदिरा पीकेर के घुर्रई ।।7।।


चतुरंगी सेना संग लाए । उचे उचे सीविएर गिराई ।।

तुमने क्रोधित रूप निकाला । प्रगती डाल गले मूंद माला ।।8।।


चर्म की सॅडी चीते वाली । हड्डी ढ़ाचा था बलसाली ।।

विकराल मुखी आँखे दिखलाई । जिसे देख सृिस्टी घबराई ।।9।।


चंदड़ मूंदड़ ने चकरा चलाया । ले तलवार हू साबद गूंजाया ।।

पपियो का कर दिया निस्तरा । चंदड़ मूंदड़ दोनो को मारा ।।10।।


हाथ मई मस्तक ले मुस्काई । पापी सेना फिर घबराई ।।

सरस्वती मा तुम्हे पुकारा । पड़ा चामुंडा नाम तिहरा ।।11।।


चंदड़ मूंदड़ की मिरतट्यु सुनकर । कालक मौर्या आए रात पर ।।

अरब खराब युध के पाठ पर । झोक दिए सब चामुंडा पर ।।12।।


उगर्र चंडिका प्रगती आकर । गीडदीयो की वाडी भरकर ।।

काली ख़टवांग घुसो से मारा । ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा ।।13।।


माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया । मा वेश्दवी कक्करा घुमाया ।।

कार्तिके के शक्ति आई । नार्सिंघई दित्तियो पे छाई ।।14।।


चुन चुन सिंग सभी को खाया । हर दानव घायल घबराया ।।

रक्टतबीज माया फेलाई । शक्ति उसने नई दिखाई ।।15।।


रक्त्त गिरा जब धरती उपर । नया डेतिए प्रगता था वही पर ।।

चाँदी मा अब शूल घुमाया । मारा उसको लहू चूसाया ।।16।।


सूभ निसुभ अब डोडे आए । सततर सेना भरकर लाए ।।

वाज्ररपात संग सूल चलाया । सभी देवता कुछ घबराई ।।17।।


ललकारा फिर घुसा मारा । ले त्रिसूल किया निस्तरा ।।

सूभ निसुभ धरती पर सोए । डेतिए सभी देखकर रोए ।।18।।


कहमुंडा मा ध्ृम बचाया । अपना सूभ मंदिर बनवाया ।।

सभी देवता आके मानते । हनुमत भेराव चवर दुलते ।।19।।


आसवीं चेट नवराततरे अओ । धवजा नारियल भेट चाड़ौ ।।

वांडर नदी सनन करऔ । चामुंडा मा तुमको पियौ ।।20।।


दोहा


शरणागत को शक्ति दो हे जग की आधार ।

‘ओम’ ये नैया डोलती कर दो भाव से पार ।।

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