Friday, February 12, 2021

श्री वैष्‍णो देवी माता 

हे मात मेरी, हे मात मेरी,

कैसी यह देर लगाई है दुर्गे।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।१।।


भवसागर में गिरा पड़ा हूँ,

काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ।

मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।२।।


न मुझ में बल है न मुझ में विद्या,

न मुझ में भक्ति न मुझमें शक्ति।

शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।३।।


न कोई मेरा कुटुम्ब साथी,

ना ही मेरा शारीर साथी।

आप ही उबारो पकड़ के बाहीं।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।४।।


चरण कमल की नौका बनाकर,

मैं पार होउँगा ख़ुशी मनाकर।

यमदूतों को मार भगाकर।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।५।।


सदा ही तेरे गुणों को गाऊँ,

सदा ही तेरे स्वरूप को ध्याऊँ।

नित प्रति तेरे गुणों को गाऊँ।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।६।।


न मैं किसी का न कोई मेरा,

छाया है चारों तरफ अन्धेरा।

पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।७।।


शरण पड़े है हम तुम्हारी,

करो यह नैया पार हमारी।

कैसी यह देर लगाई है दुर्गे।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।८।।

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